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Tuesday, 20 February 2018

सूरज दादा


सूरज दादा, चमको तुम।

नया सवेरा लाते रोज,
उजियाला फैलाते रोज,
जहाँ कहीं भी रहते लोग,
रखते सबको तुम्हीं निरोग,
अच्छे लगते हमको तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।

आसमान में रहते हो,
सबकी बाँहें गहते हो,
रोज समय पर आते हो,
रोज समय पर जाते हो,
रोज भगाते तम को तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।

परहित में तप करते हो,
नहीं किसी से डरते हो,
तुम स्वभाव से बड़े प्रखर,
कहती गरमी की दोपहर,
नहला देते श्रम को तुम।
सूरज दादा, चमको तुम।

लेखक -लाला जगदलपुरी

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