फूल जगत के हैं हम प्यारे,
रूप रँग में न्यारे न्यारे।
काम हमारा है मुस्काना,
सुन्दर पास पड़ोस बनाना।
ओस सुबह की नहला देती,
तितली आन बलैया लेती।
भौंरे गान सुना जाते हैं,
जहाँ हमें फूला पाते हैं।
पाठ प्रेम का पढ़ते आला,
एक बनाते हम मिल माला।
सदा मेल से शोभा पाते,
भेद भाव हम दूर भगाते।
चढ़े सिरों पर आदर पावें,
या सड़कों पर कुचले जावें।
कभी न मुख पर दुःख लावेंगे,
हर हालत में मुस्कावेंगे।
खिलें बाग में या घूरे पर,
हम लेते हैं प्रण पूरे कर।
यानि हँसते औ' मुस्काते,
सुन्दर पास पड़ोस बनाते।
लेखक -श्रीनाथ सिंह
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